चार पंक्तियां

खून से लिखा हो या लिखा हो सियाही से
भला "वफ़ा" के माईने कहां बदलते हैं
लगा के आग खुद ही हसरतों में अपनी
हम दिवाने अंधेरों के लिये जला करते हैं


3 comments:

  1. वाह वाह!
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  2. बहुत खूब.
    इन चार पंक्तियों में बहुत बड़ी बात कह दी आपने...बधाई।

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