स्वप्न मेरे
आश्रित नहीं
नैनों के
नींद के
रात के
यह पलते हैं
दिल के किसी कोने में
और बहते हैं
लहू की हर बूंद के साथ
असीमित प्रवाह लिये
बिन पंखों के उडते फ़िरते हैं
क्षितिज के उस पार तक
अन्तरिक्ष को खंखालते
कभी डूबते उतराते
सागर की गहराईयों में
स्वप्न मेरे
आश्रित नहीं
नैनों के
नींद के
रात के
yahi swapn to jeevan ko sarvochch shikhar dete hain ..
ReplyDeletebahut sundar...
bahut hi achhi rachna
ReplyDeleteसुन्दर भाव...
ReplyDeleteसार्थक स्वप्न!
वाह! क्या बात कही है बहुत ही सुन्दर्।
ReplyDeleteस्वप्न मेरे आश्रित नहीं नैन के , नींद के ...
ReplyDeleteजगती आँखों के सपनों की कविता अच्छी लगी !
दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.