जीवन की
छोटी छोटी
चाहतें
इच्छायें
आवश्यकतायें
जब समय के
क्रूर तंग गलियारे से
बिना फलित हुए
लौट आती हैं
अथवा
विलुप्त हो जाती हैं
तब मानवता
ओढना चाहती है
पिशाचता का लिबास
और पाना चाहती है
वो सब जो
अब तक
स्वप्न भर था
अतार्किक था
अघटित घटता है
स्वप्न फलित होते हैं
अख़बारों की सुर्खियाँ
चौराहों पर चर्चा
कोई तह तक नहीं जाता है
भूखे, नंगे, मजबूर
को नहीं सहलाता है
क्या यूं ही हर साल
आएगा जाएगा
हर पेट में रोटी
हर तन पर कपड़ा
हर सर पर जब छत होगी
वो साल कब आयेगा.
काश ऐसा हो।
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये ......
बहुत ही खूबसूरत से शब्द हैं ..इस अभिव्यक्ति के ..नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ ।
ReplyDeleteनव वर्ष की आप सभी को शुभकामनाऎं
ReplyDeleteaisa hi ho.
ReplyDeletenav varsh shubh-shubh ho.
बहुत संवेदनशील रचना ...
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभकामनाएँ
नए वर्ष की आपको भी बधाई।
ReplyDeleteगरम जेब हो और मुंह में मिठाई॥
रहें आप ही टाप लंबोदरों में-
चले आपकी यूँ खिलाई - पिलाई॥
हनक आपकी होवे एस०पी० सिटी सी-
करें खूब फायर हवा में हवाई॥
बढ़ें प्याज के दाम लेकिन न इतने-
लगे छूटने आदमी को रुलाई॥
मियाँ कमसिनों को न कनसिन समझना-
इसी में है इज्जत इसी में भलाई॥
मिले कामियाबी तो बदनामी अच्छी-
सलामत रहो मुन्निओ - मुन्ना भाई॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी