थोडा रुक जाओ

अनुबंधों के रिश्तों में
ख्वाब कहां बंट पाते हैं
खुशियां चाहे सांझी हों
पर दर्द छुपाये जाते हैं

अभी अभी मिले हो मुझसे
नाम केवल मेरा जाना है
हाथों से बस हाथ मिले हैं
मुझे अभी कहां पहचाना है

धीर धरो थोडा रुक जाओ
वक्त को मरहम हो जाने दो
अभी नहीं भूला कल मुझे अपना
कल को थोडा ढल जाने दो

हो पाया तो बांटेंगे हम तुम
कल वो अपना, ख्वाब वो अपने
बहा पीडा आंखों की सारी
भूल अभी तक देखे सारे सपने

9 comments:

  1. खूबसूरती से मन के भावों को लिखा है ..सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  2. ्खूबसूरत भावाव्यक्ति।

    ReplyDelete
  3. सुंदर रचना .....हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ

    ReplyDelete
  4. marm sparshi bate aur bhav se bhari abhivyakti

    ReplyDelete
  5. bahut sundar ....shabda shabda arthpurna

    ReplyDelete
  6. bahut sundar ....shabda shabda arthpurna

    ReplyDelete