हाईकू

बंद पलकें
और जागते सपने
 मेरा संसार
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छुआ उसने
जाने क्या सोच कर
पुलकित मैं
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घडी के कांटे
टिक टिक टिक टिक
बीता जीवन
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निगला कौन
अंतिम पहर उस
सोते चांद को
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धूप जलाती
या है शीतल करती
वहा पसीना
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नम नयन
व होठों पर कंपन
कथित मौन
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आ भी जा अब
ताक पर रख सब
वक्त नहीं है
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6 comments:

  1. बहुत सुन्दर भाव...
    मगर कुछ में आपने 5-7-5 का नियम नहीं रखा है जो हायेकु की विशेषता है..
    घडी के कांटे
    टिक टिक टिक टिक
    बीता जीवन

    ..."टिक टिक करते" ---ऐसा कर दें.

    कृपया मेरी टिप्पणी को अन्यथा ना लें..

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  2. वाह..बहुत बढि़या

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  3. behad sundar likha hai aapne.
    very nice.
    welcome.

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  4. सभी हाइकू लाजवाब ... कुछ ही पंक्तियों में सार लिख दिया ...

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