चांदनी से है दिल जला

फ़लक पे तन्हा चांद था
और जमीं पर हम रहे
न उसने कुछ कह सका
और हम भी चुप रहे

लग रहा था वो मुझे
कुछ उदास उदास सा
गर्दिशों की चपेट में
थका थका सा मुझे

सोचा उससे पूछ लू
उसके दिल की दास्तां
कि कौन दर्द पाल कर
फ़िर रहा वो यहां वहां

सवाल सुन वो मेरा
हंस दिया फ़िकी हंसी
रात भी सिहर गई
इक सर्द सी लहर उठी

आह भर कर फ़िर कहा
अजीब शय है दिल मेरा
क्या नहीं फ़लक पर है
ये जमीं पर मर मिटा

मैने कहा तो फ़िर बोल दो
जमीं से दिल की दास्तां
धीरे से बोला चांद फ़िर
कह कर अब पछता रहा

है मुझ में ही लाखों कमी
ये चांदनी भी मेरी नहीं
बस सोच सोच कर यही
होता हूं मैं छोटा बडा

दिलासा देते हुये चांद को
मैने उससे फ़िर ये कहा
सामने नजर के महबूब है
खुशकिस्मत है तू बडा.

एक हम है कि यहां
चांदनी तो है हमको मिली
महबूब नजर से दूर है
और चांदनी से है दिल जला

13 comments:

  1. वाह .... चंद के साथ संवाद बहुत अच्छा लगा ... बहुत प्यारी नज़्म

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  2. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12 -04-2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में .....चिमनी पर टंगा चाँद .

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  3. बहुत ही बढ़िया सर!


    सादर

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  4. chand aaur chani en naye andaaj me ek naye dristikon se..accha laga..pahli baar aapse parichit hone ka mauka mila..mere blog per bhee aapka hardik swagat hai

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  5. बहुत सुंदर..............................

    सादर.

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  6. बहुत सुंदर..............................

    सादर.

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  7. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  8. mohindarjee,aapkaa yah page bahut khub hai.kavitaayein laazavaab.

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  9. aapkee kavitaaein laazavaab aur yah page bahut sundar banaayaa hai aapne.

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  10. सुंदर शब्दों का चयन ,बहुत बहुत शुभकामनाएं ।

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  11. khoobsoorat lafjon ke shabd jaal...behatreen hain...lajbaav hain...

    regards mohinder ji

    deepak kuluvi
    9350078399

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