हम भी बैरागी हो गये होते -कविता


रूप रंग श्रृंगार होता
रूठन मनुहार होता
तो हम भी बैरागी हो गये होते

चातक की प्यास होती
मिलने की आस होती
तो हम भी बैरागी हो गये होते

प्रीत के ये प्रसंग होते
रिश्तो के अनुबन्ध होते
तो हम भी बैरागी हो गये होते

फ़ूलों में रंग होते
सपनों के पंख होते
तो हम भी बैरागी हो गये होते

जिह्वा के स्वाद होते
देह के अनुराग होगे
तो हम भी बैरागी हो गये होते

मोहिंदर  कुमार

1 comment:

  1. What a brilliantly written poem it is! Very well written. Thanx

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