जायदाद कोई खोई हुई


बहुत सी चाहतेँ हैँ इस दिल मेँ सोई हुई  
रूई सी नर्म और शबनम मेँ भिगोई हुई  

कुछ दर्द जिंदा हैँ मेरे अपने ही पाले हुए
कुछ ख्वाहिशेँ हैँ उनकी खातिर बोई हुई

रात आसमाँ मेँ जरा से भी बादल न हुए
फिर भी लगती है सारी कायनात रोई हुई

शायद था कोई तुफान दिल मेँ समेटे हुए
लगती है कश्ती अपनी खुद की डुबोई हुई

मिले जो चँद वो पुराने खत तेरे लिखे हुए
यूँ लगा मिल गई जायदाद कोई खोई हुई  

मोहिंदर कुमार

4 comments:

  1. कुछ दर्द जिंदा हैँ मेरे अपने ही पाले हुए
    कुछ ख्वाहिशेँ हैँ उनकी खातिर बोई हुई
    ....वाह...बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  2. सोचने पर विवश हो गए

    ReplyDelete
  3. अति सुन्दर शब्द श्री मोहिंदर जी ! पहले भी आपको पढता रहा हूँ ! स्वागत

    ReplyDelete