चू रहा था पसीना और
पँखा वह झल रहा था
उन जग रही आँखोँ मेँ
स्वप्न कोई पल रहा था
हिलती न थी शाख कोई
पेडोँ की कतारोँ मेँ मगर
एक तेज अँधड सा कोई
भीतर उसके चल रहा था
अनाज के कोटर थे खाली
और खाली पानी के घडे
मजबूरियोँ की ओखली मेँ
अरमान अपने दल रहा था
तर्क सँगत है ऐसे मेँ कितना
धीर पर अँकुश की नोक धरना
छीनू क्योँ न मैँ आकाश अपना
मानस मेँ लावा उबल रहा था
मोहिन्दर कुमार
विचारो की अभिव्यक्ति में लेखनी पूरी तरह सफल
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