गीत

मैँने भर लिया आगोश मेँ चाँद को
चाँदनी पर जहाँ मेँ फेरा लगाती रही
भुला गम को ये जहाँ बसा तो लिया
उदासी पर हर शाम डेरा लगाती रही

पहले पहल बनाई तेरी तस्वीर के रँग
दोबारा फिर कागज पर उतर न सके
रातोँ के घने काले अँधेरे सँवर न सके
यूँ किरणेँ सूरज की सवेरा सजाती रही

जीने के लिये खुद को बदल तो लिया
अपनी हर ख्वाहिश को कत्ल तो किया
कैसे चलती रहेँ साँसेँ अपनी रफ्तार से
हवा जमाने की हमेँ रास्ता दिखाती रही


मोहिन्दर कुमार



No comments: