न जाने क्या

कभी गलियारे मेँ यादोँ के
कभी बँजारे बन राहोँ पर
जाने क्या ढूँढते हैँ हम

भूलाना था जिसे हमको
वही सब  याद करते हैँ
रेत के भँवर मेँ डूबते हैँ हम

कभी मौसम जो भाते थे
और मँजर जो लुभाते थे
उन्हीँ से आज ऊबते हैँ हम

आने वाला है अब कोई
मनाने वाला है अब कोई
खुद से जाने क्योँ रूठते हैँ हम


1 comment: