गजल

सियासत की बातेँ आ ही नहीँ पाती जहन मेँ मेरे
मेरी आँखोँ ने भूख और लाचारी के मँजर देखे हैँ

जिम्मे लगाऊँ किसके, मैँ उँगली उठाऊँ किस पर
अपनोँ की आँखोँ मेँ खून व हाथ मेँ खँजर देखे हैँ

बादशाहत किसी की भी रहे नही है सरोकार मेरा
जहाँ थे महल कभी मैँने ऐसे भी कई बँजर देखे हैँ

भरे थे पानी से लबालब और मीलोँ तक थे फैले
बुझा न पाये प्यास किसी की ऐसे भी समन्दर देखे हैँ

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