tag:blogger.com,1999:blog-49483058671367481382024-03-28T23:41:27.681+05:30दिल का दर्पणMohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comBlogger454125tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-29102027715838981562023-08-06T15:15:00.001+05:302023-08-06T15:18:03.964+05:30
मेरा और मीता घोष का गाया ये कैरेओके कवर फिल्म "जानी मेरा नाम" से है.
पसंद आये तो लाइक और शेयर कीजियेगा Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-52273641107377490102022-06-12T16:05:00.007+05:302022-06-12T16:16:25.720+05:30ग़ज़ल शबे - माहताब न रहेगी उम्र भर ऐ दोस्त तू तारिकियों में भी काम चलाना सीख ले कब
रास्ते में बहारें लेने लगें तेरा इम्तहां तू खिजां को अब अपना बनाना सीख ले मंजिल
पर पहुँच कर ये राहें लौटती नहीं तू भी ख्वाबों से दिल को लगाना सीख ले सच यही है
तेरे हाथ में कभी कुछ न था ये बात अपने दिल को समझाना सीख ले देर तक न रहा यहाँ
किसी का भी ज़िक्र वादे अल्फ़ाज़ों के Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-1004131845298378102018-05-18T18:15:00.004+05:302018-05-18T18:15:34.291+05:30गजल
उन शाखोँ पर फिर से पत्ते नहीँ आये
जो काट डाली थी तूने अपने हाथ से
वह क्यारियाँ तरसीँ फिर हरी पौध को
जहाँ फूल जल गये थे भरी बरसात मेँ
यह बात मेरी समझ मेँ कभी नहीँ आई
है जिन्दगी से शिकवा, या मेरी बात से
जाने तलाश किस मँजिल की रही तुझे
खूबसूरत मरहले गुजरे यूँ आसपास से
दिल से तूने कभी अपना नहीँ समझा
औरोँ के लिये रहे तेरे खासमखास से
Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-35761270807524281022018-04-26T17:49:00.001+05:302018-04-26T18:13:13.012+05:30एक नजम
आखिर चुने गये तुम रिश्तोँ की मिनारों मेँ
और साँस ले रहे हो एहसास की दरारों मेँ
पर कतरवा अरमान घौँसल़ोँ मेँ फिर लौटे
कई नश्तर लगे हुए थे उम्मीद की दीवारोँ मेँ
वो काफिले बँधे थे किसी दूसरे ही सफर से
बेकार चलते रहे हम उन लम्बी कतारोँ मेँ
रोशनी नहीँ आग थी जो आई दूर नजर मेँ
उससे तो भले थे हम अपने चाँद सितारोँ मेँ
हर कतरा आज अपना हिसाब माँगता Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-66863932826078895362017-03-29T22:34:00.001+05:302017-03-29T22:34:08.800+05:30द हरिकैन - कविता
बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं था I आज दिन में टेलीविज़न पर एक अंग्रेजी फिल्म "The Hurricane" आ रही थी I यह एक बॉक्सर "रूबल कार्टर" के जीवन पर आधारित है जिसको अदालत के गलत निर्णय के कारण उम्र कैद हो जाती है I जेल में रह कर वह अपने जीवन पर एक किताब लिखता है I उसी किताब को पढ़ कर एक लड़का बड़ा प्रभावित होता है और उस से संपर्क करता है I अपने दोस्तों की मदद से वह लड़का रूबल कार्टर को बीस बरस की कैद काट Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-87260877478991404642017-03-13T23:14:00.001+05:302017-03-13T23:14:04.798+05:30जीवन में प्रसन्न रहने के लिए क्या करना आवश्यक है ?
अधिकतर लोग यह समझते हैं कि वह जानते हैं प्रसन्न रहने के लिए क्या करना चाहिए I विभिन्न लोग
भिन्न भिन्न कारणों को प्रसन्न रहने के लिए आवश्यक मानते हैं I
आईये इस विषय पर और आगे बढ़ने से पहले हम यह जान लें कि मृत्यु के करीब
लोगों पर किये गए सर्वेक्षण में उनके कौन से मुख्य पछतावे सामने आये ?
१. काश मुझ में हिम्मत होती और में
अपना जीवन ऐसे जिया होता जैसे मैं चाहता था ना की Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-51545472629078985602017-02-27T21:25:00.003+05:302017-02-27T21:29:14.094+05:30गज़ल
बात का अब क्या कहना
दिल की कह गया कोई
मिल गयी उसको मंजिल
टूट कर रह गया कोई
दोस्त ही ना रहा अपना
फिर भी सह गया कोई
बूँद भर भी नहीं बरसी
बाढ़ में बह गया कोई
ईंट बस एक वहां सरकी
बाँध फिर ढह गया कोई
Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-78808630706212467192016-11-24T01:20:00.001+05:302016-11-24T01:22:22.234+05:30यादों का गुलाब
दिल में तेरी यादों का गुलाब खिल तो आया है
साथ हिस्से में मगर कुछ कांटे भी मेरे आये हैं
सोचता हूँ क्यों कोई नहीं मिलता अपनों सा यहाँ
फिर याद आता है मुझे हम इस देश में पराये हैं
पहले हर आवाज पर लगता था कि कोई आया है
जानता हूँ अब कोई नहीं दस्तक देती ये हवायें हैं
जिस्म तो मेरा आवाज के घेरों से निकल आया है
क्या करूँ मैं उनका दिलसे मेरे उठती जो सदायें हैं
Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-91661483443818211482016-11-16T17:46:00.005+05:302016-11-16T17:55:45.988+05:30बस एक ख्याल भर है
अजनबी आज वही राहें हैं कभी जिन पर रोज चला करते थे
वह सपने आज अपने नहीं जो आँखों को रोज छला करते थे
-------------------------------------------------------------------
तेरे शहर मेँ बता जख्म अपने दिखाऊँ किसको
हर एक हाथ मेँ यहाँ नश्तर नजर आता है मुझे
-------------------------------------------------------------------
जानता हूँ शाखे तमन्ना तब तलक रहेगी ये हरी
खाक बन न उड Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-73086334108995083912015-08-06T17:04:00.000+05:302015-08-06T17:04:09.734+05:30न इस वहम पर चलो - गजल
हर घडी न तलाशो नक्शे कदम
कुछ दूर तो अपने दम पर चलो
बोझ से ख्वाहिशोँ के थक जाओगे
दिल मेँ अरमान कम ले कर चलो
गुजरी बातोँ का चर्चा क्योँ हर घडी
झगडे पुराने सभी दफन कर चलो
ठोकरेँ न कहीँ तेरा हौँसला तोड देँ
राहे सफर मेँ ऐसा जतन कर चलो
काफिला मँजिल तक पहुँचायेगा
भूल जाओ न इस वहम पर चलो
Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-26309454118244924832015-07-28T14:31:00.000+05:302015-07-28T14:38:50.718+05:30गजल
सियासत की
बातेँ आ ही नहीँ पाती जहन मेँ मेरे
मेरी
आँखोँ ने भूख और लाचारी के मँजर देखे हैँ
जिम्मे
लगाऊँ किसके, मैँ उँगली उठाऊँ किस पर
अपनोँ की
आँखोँ मेँ खून व हाथ मेँ खँजर देखे हैँ
बादशाहत
किसी की भी रहे नही है सरोकार मेरा
जहाँ थे
महल कभी मैँने ऐसे भी कई बँजर देखे हैँ
भरे थे
पानी से लबालब और मीलोँ तक थे फैले
बुझा न
पाये प्यास किसी की ऐसे भी समन्दर देखे हैँ
Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-10875754329001391882015-07-10T11:42:00.001+05:302015-07-10T11:42:17.581+05:30परिवर्तन का नाम ही जीवन है
हल बैल फिर खेत निरायी
कहीं बीज कहीं पौध रोपायी
हरी कौपले, कोमल डालियाँ
समय से बने सुनहरी बालियाँ
खलिहानों से दुकानों तक
दुकानों से घर की रसोई
रसोई से फिर थाली तक
किस पर क्या-क्या बीता
किस ने है क्या-क्या झेला
कुछ जग जाहिर है इस दूरी में
और कुछ न कहने की मजबूरी में
कच्ची मिट्टी सांचों में ढल कर
जलती भट्टी की आंच में तप कर
झोंपडी महल और कंगूरे
कुछ सजे हुये कुछ आधे-अधूरे
खड़े हुये हैं जो सिर को Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-38167367716964625092015-06-18T10:32:00.001+05:302015-06-18T10:32:17.906+05:30जीवन एक कैनवास - कविता
जीवन क्या है?
जन्म और
मृत्यु के बीच
एक
अन्तराल
कभी
दीर्घ अनुभूति, कभी लघु आभास
जीवन एक
चित्रपट (कैन्वॅस)
काल की
लेखनी उकेरती जिस पर
कभी
सूक्ष्म, कभी वृहद
रेखाचित्र
धीर
गम्भीर या फिर मधुर सुहास
जीवन एक
चित्रपट (कैन्वॅस)
भाग्य व कर्म की तूलिकाएँ भरतीं जिसमें
भावनाओं
के विभिन्न रंग
कभी
करुण, आकुल, कभी प्रखर
उल्लास
जीवन एक
चित्रपट (कैन्वॅस)
अराधक
के लिये जीवन भक्ति है
सबल के
लिये जीवन शक्ति Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-85752425248897870222015-06-18T10:18:00.000+05:302015-06-18T10:19:36.336+05:30यहाँ मेरे लिये - गजल
क्या नहीँ है आज यहाँ मेरे लिये
कोई दुआ है फली यहाँ मेरे लिये
हजार दुश्मन तो कोई बात नहीँ
तुम तो मेरे हो ना यहाँ मेरे लिये
बस्ती-ए-ख्वाब से एक बार गुजरा
ठहरना लाजिम अब यहाँ मेरे लिये
महफिल मेँ बस इक तेरे आने से
सब कुछ नया-नया यहाँ मेरे लिये
मुझसे नजरेँ फेरे लेने से पहले ही
बताना क्या सजा है यहाँ मेरे लिये
Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-43444061097590184462015-06-17T12:49:00.002+05:302016-05-15T21:47:15.375+05:30यही हौँसला रखा - गजल
धूप से रहगुजर की सायोँ से वास्ता रखा
हो सका जहाँ तक बीच का रास्ता रखा
सिर्फ दोस्ती ही नहीँ निभाई है यहाँ मैँने
दुश्मनोँ से भी है बराबर का राब्ता रखा
कुछ मीठे और कुछ कडवे घूँट पीने पडे
बना के मैँने मगर जुँबा का जायका रखा
राहोँ मेँ मुझे जहाँ भी चिराग सोये मिले
मैँने आँखोँ मेँ अपनी ख्वाब जागता रखा
और क्या था दुआओँ के सिवा मेरे साथ
रहेगा उनका असर बस यही हौँसला रखा
Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-66162372186037270402015-06-17T11:30:00.001+05:302015-06-17T11:36:19.970+05:30मेरा कविता सँग्रह "दिल का दर्पण"
मेरा प्रकाशित कविता सँग्रह "दिल का दर्पण" नीचे दिये लिंक पर जा कर प्राप्त किया जा सकता है. पुस्तक का मुल्य रु. 105 मात्र + रु 40 पोस्टेज है.
http://www.infibeam.com/Books/dil-ka-darpan-mohinder-kumar/9789381394212.html#variantId=P-M-B-9789381394212
मोहिन्दर कुमार
Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-18415582577430159292015-06-16T10:21:00.003+05:302015-06-16T10:21:37.874+05:30क्या कहा जाये - गजल
कई झूठे अफसाने हैँ फिजाओँ मेँ
किससे बोलेँ और क्या कहा जाये
जब भी कभी बोलने की सोची है
दिल का मश्वरा था चुप रहा जाये
दर्द रह रह कर दिल मेँ उठता है
खुद सह लो जब तलक सहा जाये
वक्त की धार ही सबकी किस्मत है
साथ बह लो इसके गर बहा जाये
सभी काफिलोँ की अपनी मँजिल है
जिसकी मँजिल नहीँ वो कहाँ जाये
Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-86314372876051380012015-05-25T11:01:00.000+05:302015-05-25T11:01:00.398+05:30डोगरी भाषा मेँ कविता
डँगरेयाँ चरान्दे चरान्दे
घा छम्मण पौँदेँ पौँदे
ऐ जिन्द्डी बेहाल होई
बिन दाँणेयाँ पराल होई
तू कुत्थु दिक्खी सकेया
खूँगेयाँ पेराँ जो घाह दित्ते
रौनकाँ देया ओ मेरम्माँ
दिन मुज्जो तू सिआह दित्ते
बुज्झी चुक्की लौ हुण ताँ
ऐथू जुग्नू हन्न गवाह मत्ते
मर्जिया दा हुण मलाल क्यो
लादियाँ थाँहाँ दे हुँदे लाद्दे रस्ते
Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-91196618578534853992015-05-25T10:58:00.000+05:302015-05-25T10:58:03.806+05:30न जाने क्या
कभी गलियारे मेँ यादोँ के
कभी बँजारे बन राहोँ पर
न जाने क्या ढूँढते हैँ हम
भूलाना था जिसे हमको
वही सब याद करते हैँ
रेत के भँवर मेँ डूबते हैँ हम
कभी मौसम जो भाते थे
और मँजर जो लुभाते थे
उन्हीँ से आज ऊबते हैँ हम
न आने वाला है अब कोई
न मनाने वाला है अब कोई
खुद से जाने क्योँ रूठते हैँ हम
Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-2500481566770684292015-05-25T10:55:00.001+05:302015-05-25T10:55:36.077+05:30एक पर्वत की व्यथा -
गर्व से सर उठाये
पर्वत की शिखरोँ को
सूर्य की किरण
सर्वप्रथम
व अंतिम किरण
अंत तक
निज दिन चूमती है
परंतु चकित हूँ
यह फिर भी हरित नहीँ होती
हरित होती हैँ घाटियाँ
जीवन वहीँ विचरता है
किँचित यह ओट देने का श्राप है
अथवा दमन का प्रतिशोध
कि जल की एक बूँद नहीँ ठहरती यहाँ
जल स्त्रोत इसी गोद मेँ जन्म ले
पलायन कर जाते हैँ
हवा की सनसनाहट
बादलोँ की गडगडाहट
के अतिरिक्त कोई स्वर Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-72431778170649442142015-04-20T16:02:00.000+05:302015-04-20T16:05:16.466+05:30शरीर एँव आत्मा - नाव व यात्री
शरीर एक नाव है
एँव आत्मा एक यात्री
यही सत्य है सभी कहते हैँ
यदि यह सत्य भी है
महान तो शरीर ही हुआ ना
जीवन भर ढोता रहा जो
इस यात्री का बोझ
जो केवल मूक साथी था
इस घाट से उस घाट
की बीच की दूरी का
इस आशा मेँ इस पर सवार
किंचित यह नाव
समय के धारे के विपरीत
बह कर उसे मिला देगी
उस परम ब्रह्म से
जिसका वो एक अँश है
उसे क्या बोध कि
इस नाव के साथ बँधी हैँ
Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-38559548451222941422015-04-20T15:56:00.003+05:302015-04-20T16:07:18.489+05:30गजल
तुम तो चले गये बहुत से अफसाने छोड कर
चलो यादोँ ने तुम्हारी साथ मेरा निभा दिया
समझा था जिन्दगी चलती है सीधी राह पर
अच्छा हुआ तुमने मुझे आईना दिखा दिया
बहुत देर तलक रहा तुम्हारे आने का इंतजार
फिर तुम खुश दिखे तो सब कुछ भुला दिया
अब मैँ माँगता भी तो क्या देने वाले से और
वो गैर भी तो नही था जिसने मुझे दगा दिया
बस ये साँसेँ ही नहीँ छोडती मुफलिसी मेँ साथ
साँसोँ का कर्ज था Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-20717142418052521762015-03-11T15:41:00.002+05:302015-03-11T15:41:40.006+05:30 पलाश
तुम बिन क्या हाल है मेरा
सब कुछ पूछो यह न पूछो
बाहर से कोई जान न पाये
भीतर क्या है हाल न पूछो
बसंत छाई है उपवन मेँ
पलाश उपजा मेरे मन मेँ
गँधहीन पुष्पोँ से सज्जित
पत्रहीन स्वय़ँ से लज्जित
जिसे देख कर सभी सराहेँ
क्षितिज लालिमा की रेखायेँ
फूलदान के लिये नहीँ खरा
जँगल की आग है नाम धरा
टेसू बन दिन भर झरता हूँ
अबीर गुलाल भी बनता हूँ
रँगता हूँ मैँ सब के मन को
Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-84993256098748517222014-12-18T15:57:00.000+05:302014-12-18T15:57:31.052+05:30आतँकवाद एक कोढ की बिमारी
पेशावर (पाकिस्तान) के एक स्कूल मेँ आतँकवादियोँ द्वारा निर्दोश बच्चोँ की
हत्या और उनके परिजनोँ के दुख से उपजी कुछ पक्तियाँ समर्पित हैँ.... इस घटना की जितनी
निन्दा की जाये कम है... साथ ही अपराधियोँ के लिये बडे से बडा दण्ड भी कम रहेगा...
शायद फाँसी भी कम पड जाये.
झर गये आशाओँ के
सुमन
सूनी हरी भरी क्यारी
हो गई
जालिम दरिँदोँ का
क्या गया
गिनती मेँ इक शुमारी
हो गई
रोयेगी माँ की आँख
उम्र भर
Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4948305867136748138.post-19051194612065151892014-11-28T12:49:00.000+05:302014-11-28T12:49:02.003+05:30गीत
मैँने भर लिया आगोश मेँ चाँद को
चाँदनी पर जहाँ मेँ फेरा लगाती रही
भुला गम को ये जहाँ बसा तो लिया
उदासी पर हर शाम डेरा लगाती रही
पहले पहल बनाई तेरी तस्वीर के रँग
दोबारा फिर कागज पर उतर न सके
रातोँ के घने काले अँधेरे सँवर न सके
यूँ किरणेँ सूरज की सवेरा सजाती रही
जीने के लिये खुद को बदल तो लिया
अपनी हर ख्वाहिश को कत्ल तो किया
कैसे चलती रहेँ साँसेँ अपनी रफ्तार से
हवा जमाने की हमेँ Mohinder56http://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com0