पूनम की रात
तुम नही साथ
याद आते ही तुम्हारी
आंखों में अश्रू झिलमिलाते हैं
पलकें मूंदते ही
टूटे सपनों की तरह
रेत पर बिखर जाते हैं
पनीली आंखों को
चांदनी न भाती है
आंखों आंखों में
सारी रात जाती है
पूनम की रात
झूठा दिलासा दे
खुद को संभाला है
वर्षों से यह ऐक
भ्रम पाला है
लौट आओगे तुम
एक दिन फिर से
ये अमावस बीत जायेगी
चांदनी फिर से खिलखिलायेगी
पूनम की रात
तुम नही साथ
मोहिन्दर
5 comments:
झूठा दिलासा कैसा..आशावान बने रहने में क्या बुराई है.
--भाव अच्छे हैं.
सुन्दर कविता है । और आशा पर ही तो संसार टिका है ।
घुघूती बासूती
बहुत खूब मोहिंदर जी .. बहुत ही भाव पूर्ण रचना है ...
लौट आओगे तुम
एक दिन फिर से
ये अमावस बीत जायेगी
चांदनी फिर से खिलखिलायेगी...
एक उमीद्द से भारी हुई...
मोहिन्दर जी आज आपका ब्लोग मैने ढूँढ ही लिया...आखिर कब तक छुपे रहते आप...
रचना बहुत ही सुन्दर है पूनम की रात और तुम नही साथ..कैसी विडम्बना है..बहुत ही दिल को छूलेने वाली कविता लिखी है..जब दिल में दर्द हो तो पूनम की रात भी अमावस्या की रात नजर आती है...
सुनीता(शानू)
badaa he bhav vibhor kar dene valli aapki ye rachanaa sach kuch samya k liye yadoon ki athaah gehri sagar me doob jaati hai........
bahot achhe......
really u r a mature and parfect poet.......
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