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ना गम के लिये
ना खुशी के लिये
वक्त रुकता नही
किसी के लिये
जिन्दगी है समझो बस
जब तलक सांस चलती रहे
दुनियादारी कब रुकी है
मुर्दों के लिये
जान से जानी को भी
आग के हवाले करते हैं लोग
रोज़ जाने यहां
कितने मरते हैं लोग
वक्त है कि मुसलसिल
बहा जाता हर घडी
कुछ दिन सिसक कर
फिर से हंसने लगते हैं लोग
रिश्ता करीबी हो तो
ये सितम कुछ कम नही
वरना गिनती समझ कर
हादसों की खबर
रोज पढते हैं लोग
मोहिन्दर
ना खुशी के लिये
वक्त रुकता नही
किसी के लिये
जिन्दगी है समझो बस
जब तलक सांस चलती रहे
दुनियादारी कब रुकी है
मुर्दों के लिये
जान से जानी को भी
आग के हवाले करते हैं लोग
रोज़ जाने यहां
कितने मरते हैं लोग
वक्त है कि मुसलसिल
बहा जाता हर घडी
कुछ दिन सिसक कर
फिर से हंसने लगते हैं लोग
रिश्ता करीबी हो तो
ये सितम कुछ कम नही
वरना गिनती समझ कर
हादसों की खबर
रोज पढते हैं लोग
मोहिन्दर
3 comments:
अच्छा लिखा है
बढ़िया लिखा है, मोहिन्दर जी. बधाई.
संवेदनशील व्यक्ति की समर्थ सोंच…
बहुत सही कविता है…।
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