बिन पंख उडान



बीता हुआ समय
आदमी के
हौंसलों का
बयान करता है
मन बिन पंखों के भी
ऊंची उडान भरता है
वर्तमान में हम सब हैं जहां
एक दिन की वह सोच नही
कितनी आंखों के स्वप्न
बने बिगडे होंगे
असंख्य आंसू,
अनगिनत मुस्कराहटों
की प्रतीक्षा का
प्रतिरूप होगा
यह वर्तमान
हमें सहेजना है
यह सब
जो विरासत में मिला
और आगे बढना है
बिन पंखों की उडान
के बल पर
भूत से प्राप्त उर्जा के साथ
ताकि आने वाली पीढीयां
दोहरा सकें यह
विजय गान
जिसे आज हम गा रहे हैं
हम से भी अधिक
ऊंचे स्वर में

4 comments:

Udan Tashtari said...

अच्छा संदेश देती अच्छी रचना, बधाई:

जिसे आज हम गा रहे हैं
हम से भी अधिक
ऊंचे स्वर में

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर ! अच्छी है यह आपकी बिन पंख उड़ान !
घुघूती बासूती

Pramendra Pratap Singh said...

बीता हुआ समय
आदमी के
हौंसलों का
बयान करता है

सही तभी तो हर व्‍यक्ति अपने पिछले समय को याद करता है।

रंजू भाटिया said...

बिन पंखों की उडान
के बल पर
भूत से प्राप्त उर्जा के साथ
ताकि आने वाली पीढीयां
दोहरा सकें यह
विजय गान
जिसे आज हम गा रहे हैं
हम से भी अधिक
ऊंचे स्वर में

bahut khoob likha hai ..