चन्द शेर मेरी कलम से

कहाँ जज़बातों की कश्ती
कहाँ हालात के समन्दर
मैं बयाँ कर भी देता
गर लफ़जों की बात होती
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उल्फ़त में तेरे वादे
ईमान से गये हम
हसरत थी इक मकां की
दुकान बन गये हम
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सरे मैखाना भी मैं प्यासा हूं
और क्या तिष्ना-लबी होगी
मैं मुस्कराऊंगा उसी दिन
जब तेरे चेहरे पर हंसी होगी
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गमों से लबरेज है मगर
वो शक्स हंसता रह्ता है (और फ़लसफ़ा देखिये)
क्या जीने के लिये
सांसों की जरूरत नहीं होती
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1 comment:

Anonymous said...

Sorry for writing in english. I have read most your poems, soon I will try to read all of them. They have charm and depth.I have tagged you. Hope you will write soon on the topic I have given you.