कहीं राह में कोई बाधा खडी नही है
बस बन्धक हूं मैं अपने चिन्तन का
चाहूं, क्षण भर में हृदयहीन हो जाऊं
तदोपरान्त क्या हो जीवन स्पंदन का
ज्वालामुखी सरीखा ओद्योलित हो कर
पल में हिम-खण्ड पिघला सकता हूं
तदक्षण मन मे यह विचार आता है
क्या हो वर्षों धारण इस शांत छवि का
रक्त सम्बन्धों पर पलों का प्रेम हावी
ममता लगे छिछोरी यौन-प्रसंग प्रभावी
जब धरा हो दलदल जडें निरी खोखली
पतन निश्चित है सम्बन्धों के वट का
जीवन मूल्यों के असामान्तर चल कर
किसको छला हमने स्वंय को छल कर
सार्थकता के मूल मन्त्र से भटक कर
खण्डन कर बैठे मानवता के दर्पण का
कहीं राह में कोई बाधा खडी नही है
बस बन्धक हूं मैं अपने चिन्तन का
चाहूं, क्षण भर में हृदयहीन हो जाऊं
तदोपरान्त क्या हो जीवन स्पंदन का
11 comments:
सुंदर है :)
सुन्दर विचार
यदि कविता की प्रथम पंक्तियाँ अंत में पुनः दोहराते तो कविता में एक अलग ही पूर्णता आ जाती, ऐसा मेरा मत है।
आपका
संजय गुलाटी मुसाफिर
अच्छे भाव और सुन्दर विचार.
जीवन मूल्यों के असामान्तर चल कर
किसको छला हमने स्वंय को छल कर
सार्थकता के मूल मन्त्र से भटक कर
खण्डन कर बैठे मानवता के दर्पण का
अच्छे भाव हैं मोहिन्दरजी
अंतर में शून्य, अर्थ क्या है झूठे दंभों छलनाओं का
बस जर्जर नैतिक मूल्यों ने ही तो पथ में विध्वंस किये
हम खुद विष पीकर कहते हैं,ये गम हैं मन बहलाने को
अपने प्राणों को हमने ही तो हैं रह रह कर दंश दिये
बिलकुल आपसे मिलता-जुलता मैंने भी लिखा है-
मैं अपनी महात्वकांक्षाओं का शिकार हूँ
बस्स, मानसिक तौर से बीमार हूँ।
स्वयं से ही तो इन्सान मार खा जाता है , यह मन है कि मानता नही , अति सुंदर विचार !
बडे गहरे भाव है कविता के..मन को छू लेने वाले..
कविता बहुत सुन्दर लगी मोहिन्दर जी.
बधाई.
मोहिन्दर जी बहुत अधिक गहरा असर छोड़ती है आपकी कविता...
जबर्दस्त। कविता भी और तस्वीर भी।
Hello Mohinderji,
Reads your good poems. Before this I never known that you are such a good writer. Keep it up and sent me regularly.
Thanks.
Kanwar
बहुत सुंदर कविता है।
Post a Comment