हम तुम रात खिडकी-कांच, चांद-रोशनी और एक झिझक सी कनखी-चितवन, होंठ-कंपन और एक तपन सी करवट-सिलवट, मौन-चुभन और एक उलझन सी अतीत-अश्रू, भविष्य-अनिश्चित और एक आशा सी संदेह-प्रश्न, भय-चिन्तन और एक किरण सी चार पहर भोर हम तुम
मोहिन्दर जी लाजवाब कविता । प्रेम के सूक्ष्म मनोभावों को इतना सुन्दर जामा पहनाया है आपने कि प्रशंसा के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं । एक-एक शब्द रस में डूबा हुआ है । अभी तक आपको एक शायर के रूप में जाना था । एक कवि के रूप में आपका परिचय हर्षित करने वाला है । भाव और भाषा के इतने कुशल सम्मिश्रण के लिए बधाई ।
7 comments:
क्या बात है, मोहिन्दर जी! आजकल तो लगता है आपने नये-नये प्रयोगों पर खासा ज़ोर दे रखा है. एक और खूबसूरत रचना के लिये बधाई!
-अजय यादव
http://ajayyadavace.blogspot.com/
http://merekavimitra.blogspot.com/
बहुत खूब्……भाव अच्छे लगे
अनूठा प्रयोग-आनन्द आया नया अंदाज देख कर. बधाई.
मोहिन्दर जी
लाजवाब कविता । प्रेम के सूक्ष्म मनोभावों को इतना सुन्दर जामा पहनाया है आपने कि प्रशंसा के लिए
शब्द कम पड़ रहे हैं । एक-एक शब्द रस में डूबा हुआ है । अभी तक आपको एक शायर के रूप में
जाना था । एक कवि के रूप में आपका परिचय हर्षित करने वाला है ।
भाव और भाषा के इतने कुशल सम्मिश्रण के लिए बधाई ।
सुन्दर प्रयोग है. मोहिन्दरजी.
बहुत दिनों के बाद यहाँ आना हुआ और आते ही पढ़ा बहुत कुछ नया और अदभुत बहुत ही सुंदर ..बहुत खूब मोहिंदर जी
bahut sundar
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