दिल का दर्पण बनाम चाट की दुकान

भई हम तरकश स्वर्ण कलम पुरस्कार के अधिकारी क्या बने... कई लोगो ने हमारे विरुध धनुष बाण उठा लिये और दे दनादन शब्द बाणों की बौछार कर दी.. हमें ढाल सम्भालने का भी मौका नहीं दिया. हमारे साथ साथ आयोजकों को भी घसीट लिया और उनकी तटस्था पर भी कीचड उछाल दिया कि कहीं न कहीं दाल में कुछ काला है... और कुछ को तो लगा होगा कि शायद पूरी दाल ही काली है.

सबसे बडा आश्चर्य तो यह था कि दोनों विजेता चिट्ठे कविता प्रधान थे... बात हजम नहीं हो रही थी.. जब कविता लोगों को आसानी से हजम नहीं होती तो फ़िर यह होना तो स्वभाविक ही था.

एक बात बता दूं मेरे चिट्ठे पर कहानी भी है और कुछ मेनेजमेंट पाठ और हास्य रस भी मगर जो चिट्ठे तक आया हो वही यह जान पायेगा.

हमने भी खूब विशलेषण किया और फ़िर यह तय किया कि हम अपने चिट्ठे को हलवाई की दुकान या चाट पकोडी की दुकान सा बना देंगे जिसमें सभी स्वाद परोसे जायें ताकि आस पास मक्खी-मच्छरों की भरमार रहे..... वरना अगली बार हमारे हाथ कोई दूसरा पुरस्कार लग गया तो लोग फ़िर कहेंगे... दो चार लोग उक्त चिट्ठे को पढते हैं और वही बाजी मार गया.

हमने इस बात का भी विशलेषण किया कि सभी चिट्ठों पर धूंआधार टिप्पणी क्यों नहीं होती तो कुछ तथ्य सामने आये.. शायद यह तथ्य आप के काम भी आयें इस लिये इनका खुलासा किये दे रहा हूं.

यदि चिट्ठों का वर्गीकरण उनमे परोसे गयी रचनाओं के आधार पर किया जाये तो मेरे विचार से निम्न श्रेणियां बनेंगी :

१. कविता / गजल प्रधान
२. कहानी प्रधान
३. रोचक तथ्य प्रधान
४. गीत संगीत प्रधान
५. अखवारी या मीडिया की सूर्खियों की छाप
६. धार्मिक तथ्य प्रधान
७. राजनैतिक गतिविधियों से लिप्त
८. तकनीकि लेख प्रधान
९. दूसरों के चिट्ठे पर अपना व्यक्तिगत मत थोपने वाले चिट्ठे
१०.कुछ न सूझे तो भी कुछ न कुछ लिख डालो
११.टेस्टिग पोस्ट ब्लोग :)

अब आती इस बात की बारी कि कौन क्या पढता है और किसकी क्या रुची है. अगर मैं अपनी कहूं तो मैं कविता, कहानी, तकनीकि चिट्ठों पर ज्यादा जाता हूं. जहां तक टिप्पणियों का सवाल है जरूरी नहीं कि मैं जहां जाता हूं वहां मैं टिप्पणी करता हूं .. यही बात सब पाठकों पर लागू होती है... सब के पास इतना समय नहीं होता कि पोस्ट पढने के साथ साथ टिप्पणी भी करे... हां कुछ दोस्तों की पास टिप्पणी पर टिप्पणी करने का समय भी होता है. अब बात यह कि मैं दूसरी तरह के चिट्ठों पर कम क्यों जाता हूं तो उसका उत्तर यह है कि जो सामग्री मुझे टेलीवीजन, अखबार या अन्य स्त्रोतों से मिल जाती है उसको चिट्ठे पर जा कर पढने का क्या औचित्य है.

आत्म मंथन से लगा कि मेरे व्यक्तिगत विचार जो भी हों यदि मेरे चिट्ठे पर विविध सामग्री रहेगी तो पाठकों की संख्या अवश्य बढेगी.. एक बार मन हुआ अपने चिट्ठे का नाम "दिल का दर्पण" से बदल कर "चाट की दुकान" रख दूं मगर यह करना मुमकिन नहीं... ग्राऊंड जीरो से काम शुरू करना पडेगा सो इसी चिट्ठे में विविध चटपटे व्यजंन परोसने का मन बना लिया है.... और पोस्ट को इस प्रयत्न की पहली कडी समझा जाये :)

2 comments:

Anonymous said...

मोहिंदर जी आप ब्लॉग जगत की महानतम हस्ती हैं, प्रथम पुरस्कार ने इस बात को साबित किया है. आप बहुत अच्छा लिखते हैं, आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है, आप हिंदी साहित्य के शिखर पुरुष हैं, आपको अपने बीच पाकर हम धन्य हैं, हिंदी साहित्य के क्षेत्र में आपके योगदान को स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा, अभी अनेक पुरस्कार आपको मिलेंगे और इन पुरस्कारों से आप नहीं, पुरस्कार देने वाले धन्य होंगे कि उन्होंने किस महान हस्ती को चुना है जिससे उनके पुरस्कार की शोभा बढ़ गई. जल्दी ही आपकी कविताओं का कोरियाई, चीनी, जापानी से लेकर ग्रीक तक में अनुवाद होगा, पूरी दुनिया आपके तरानों पर झूमेगी. आपकी प्रतिभा को जो नहीं समझ पा रहे हैं यह उनकी छोटी बुद्धि का दोष है, आप निरंतर साहित्य साधना में लगे रहें, साहित्य का उद्धार आपके ही हाथों लिखा है, आप का जन्म ही हुआ है साहित्य की सेवा के लिए. आपका एक अनन्य प्रशसंक हूँ, आपकी प्रतिभा का कायल हूँ...आप तनिक चिंता न करें जो आपकी सफलता से जल रहे हैं, वे खुद जलकर बुझ जाएँगे, आप अपनी कालजयी रचनाओं का सृजन जारी रखिए,पूरी दुनिया पलकें बिछाए बैठी है. मोहिंदर जी प्लीज़ हमें वंचित न करिए, इनाम तो आपके असाधारण साहित्यिक कर्म का एक छोटा सा परिणाम है, आप तो ज्ञानपीठ नहीं बल्कि साहित्य का नोबेल पुरस्कार पाने के अधिकारी हैं, आपको मेरी बातें थोड़ी असंभव लग रही हैं लेकिन अगर आप जुटे रहें तो मैं निश्चित रूप से कह सकता हूं कि आप में नोबेल पुरस्कार पाने की भरपूर योग्यता है.

रवि रतलामी said...

"हमने भी खूब विशलेषण किया और फ़िर यह तय किया कि हम अपने चिट्ठे को हलवाई की दुकान या चाट पकोडी की दुकान सा बना देंगे जिसमें सभी स्वाद परोसे जायें ताकि आस पास मक्खी-मच्छरों की भरमार रहे....."

:)