मां भवानी को मोहिन्दर कुमार का नमस्कार

मां भवानी मैने सोचा था कि तुम मां हो... बच्चे के दिल की बात समझ जाओगी.. मगर तुम भी वैसी ही निकली जैसा जमाना है... यानि कि सौतेली मां.

मैं जो रोया वह अपने लिये नहीं था... उन सबके लिये था जो अगली बार "तरकश के तीर" का शिकार होने वाले हैं. हो सकता है उनमें से तुम्हारा कोई प्रिय बालक भी हो.

कविता या कहानी का स्तर किसी प्रशस्तिपत्र या ट्राफ़ी से ऊंचा नहीं हो जाता.... उसे ऊंचा बनाते हैं पढने वाले और आपकी लिखने की शैली से तो लगता है कि आपका इन दोनों विधाओं से दूर दूर तक का नाता नहीं है.


नाम "मां भवानी" रखा है तो कुछ नाम का ही ध्यान रख कर लिख लो क्यों अपने लिये नर्क के द्वार खोलने का इन्तजाम कर लिया है. मुझे पता है कि मुझे कितने लोग जानते हैं... कम ही सही मगर अच्छे काम के लिये जानते होंगें मगर तुम्हारा तो नाम ही सुन कर लोग दूसरी तरफ़ सरक लेते हैं :) सच कह रहा हूं.. एक भला किया है आपने मेरा.... मेरी इस पोस्ट पर मुझे काफ़ी हिट मिलने वाले हैं.... एक और पोस्ट लिखोगी तो मुझे भी एक और पोस्ट लिखने का मौका मिलेगा.... सो लिखती रहना........

जै काली मैया की
जिस पोस्ट के जबाब में यह पोस्ट लिखी गई है उसका लिन्क यह है "मां भवानी"

2 comments:

Anonymous said...

Nice Post !
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शोभा said...

मोहिन्दर जी
जिस भी कारण से लिखा हो अच्छा किया। माँ भवानी को याद तो किया। जय माँ भवानी