नव वर्ष लाया संदेश

नववर्ष को यूँ परिभाषित कर
कुछ दीप नए प्रकाशित कर
बह और बहा प्रेम की नदिया
उल्लासित हो, उल्लासित कर

भुजाओं में संचित शक्ति से
निर्माण कर निर्माता बन
रक्त बीज न बो आँगन में
भक्षक न हो. दाता बन

इन साँसों का है मोल बड़ा
इस तन पर ज्यूं रत्न जडा
माटी से न इसका सौदा कर
सतकर्मों से अपनी झोली भर

कल का कल है आज बना
आज पल में कल हो जायेगा
एक द्वार बन, दीवार न बन
अन्यथा स्वंय पछतायेगा

आज की रात है भले काली
कल की किरण उजाला देगी
स्नेह लेप लगा पर-घावों पर
बात यह आनंद निराला देगी

नववर्ष को यूँ परिभाषित कर
कुछ दीप नए प्रकाशित कर
बह और बहा प्रेम की नदिया
उल्लासित हो, उल्लासित कर

3 comments:

seema gupta said...

इन साँसों का है मोल बड़ा
इस तन पर ज्यूं रत्न जडा
माटी से न इसका सौदा कर
सतकर्मों से अपनी झोली भर
नया साल नई आशाये नई उमंगें लेकर आपको और प्रसिद्दि ,प्रतिष्टा प्रदान करे
regards

Sushil Kumar said...

अच्छी कविता। मोहिन्दर जी,कभी मेरे यहाँ भी तशरीफ़ लायें- http://sushilkumar.net

और http://diary.sushilkumar.net
नववर्ष की मंगलकामनाओं के साथ।

राज भाटिय़ा said...

आप की कविता तो नव वर्ष का बहुत सुंदर संदेश लायी, बहुत ही सुंदर भाव.

नव वर्ष की आप और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं !!!नया साल आप सब के जीवन मै खुब खुशियां ले कर आये,ओर पुरे विश्चव मै शातिं ले कर आये.
धन्यवाद