जानिबे मंजिल है कि नहीं

जानिबे मंजिल है कि नहीं
ये राह किसको खबर है
हो चुका तय कितना
कितना बाकी ये सफ़र है

मैं तो चलता ही रहा
मोड मुडता ही गया
सोचना किस के लिये
रुकना किस के लिये
हमसफ़र कोई नही
न  काफ़िलों पे नजर है

सरे राह लोग मिले
अब कुछ याद नहीं
बीते लम्हों से मेरी
कोई फ़रियाद नहीं
वही दिन रात मेरे
और वही शामो सहर है

हर कोई घूम रहा
फ़ासले साथ लिये
लब पे तब्बसुम
नश्तर हाथ लिये
वो मिलेगा न यहां
ये दुश्मनों का शहर है

जानिबे मंजिल है कि नहीं
ये राह किसको खबर है
हो चुका तय कितना
कितना बाकी ये सफ़र है

2 comments:

  1. सरे राह लोग मिले
    अब कुछ याद नहीं
    बीते लम्हों से मेरी
    कोई फ़रियाद नहीं
    वही दिन रात मेरे
    और वही शामो सहर है
    waah

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