पलकों के छोर पर

तुम मिले भी तो किस मोड पर
जब चल पडा मैं सब छोड कर

अब न दुनिया की मुझे है फ़िक्र
आराम से लेटा कफ़न ओढ कर

इक लपट और फ़िर रोशन सब
अंधेरों का हर गुमान तोड कर

राख पर आंसू न बेकार बहाना
यादें सहेजना पलकों के छोर पर

2 comments:

  1. इक लपट और फिर रोशन सब

    अंधेरों का हर गुमान तोड़कर

    मार्मिक ग़ज़ल ....

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  2. राख पर आंसू न बेकार बहाना
    यादें सहेजना पलकों के छोर पर
    bahut badhiyaa

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