नेह से, स्नेह से रिश्ते बंध जाते हैं
मान से, मनुहार से गये लौट आते हैं
इक घाव से क्यों टूटे डोर ये बरसों की
क्या अपने हाथों हम घाव नहीं खाते हैं
मान से, मनुहार से गये लौट आते हैं
इक घाव से क्यों टूटे डोर ये बरसों की
क्या अपने हाथों हम घाव नहीं खाते हैं
maan manuhaar iktarfa kyun
ReplyDeletephir ek ghaaw ka intzaar kyun !!!
वाह क्या बात कही है……………सार्थक विचार्।
ReplyDeleteबहुत प्यारा मुक्तक
ReplyDeleteबहुत सार्थक सोच..
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