मान से मनुहार से

नेह से, स्नेह से रिश्ते बंध जाते हैं

मान से, मनुहार से गये लौट आते हैं

इक घाव से क्यों टूटे डोर ये बरसों की

क्या अपने हाथों हम घाव नहीं खाते हैं

4 comments:

  1. maan manuhaar iktarfa kyun
    phir ek ghaaw ka intzaar kyun !!!

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  2. वाह क्या बात कही है……………सार्थक विचार्।

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  3. बहुत सार्थक सोच..

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