जीवन की ढलान पर
अन्तिम पडाव के समीप
अकेले चलते चलते
मुझे तुम आज भी याद हो
चाहे व शुन्य सी शान्ति थी
चाहे ट्रेफ़िक और भीड का शोरगुल
अनचाहे प्रश्नों की बौछार थी
या स्वय़ उच्चारित उत्तर
मुझे तुम आज भी याद हो
शायद नजर धुंधला गई है
या फ़िर राह पर कोई नही है
ये किसकी परछाईं है जो
सोते जागते मेरा पीछा करती है
मुझे तुम आज भी याद हो
घाव चाहे दिखाई नही देते
पर पीडा अभी भी असहनीय है
सब कुछ खोता सा जा रहा है
आशा की धुंधली सी किरण से जीवित हूं
मुझे तुम आज भी याद हो
2 comments:
सुन्दर प्रस्तुति ... यादें जीवंत बना देती हैं
sundar kavita....badhai
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