तुम्हीं तो मेरा बसन्त हो - कविता


आज तक सींचते रहे
अपने प्यार के अमृत से
मुझ निर्जीव ठूंठ को तुम
और जब कौंपले अंकुरित हुई हैं
तब छोड कर जाने लगे हो
कैसे रोकूं मैं तुम्हें
है नहीं तुम पर कुछ
अधिकार विषेश मेरा
परन्तु जाते जाते यह भी सुन लो
मुर्झा जायेंगी कौंपले सब
जो तुम्हारे स्पर्ष से पल्ल्वित हुई
केवल वही ठूंठ रह जायेगा
जो तुम्हारे आगमन से पूर्व था
क्योंकि तुम्ही तो मेरा बसन्त हो
क्योंकि तुम्हीं तो मेरा बसन्त हो

इस कविता को आप मेरे स्वर में नीचे आडियो प्लेयर पर सुन सकते हैं.


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