ऐ दिल
ख्वाबोँ की बस्ती से
निकल चल तो अच्छा हो
ये वो रँग हैँ
बिगाड देँगे जिंदगी की तस्वीर
जो तेरी
ले समझ
उस क्षितिज
से आगे
है और
भी दुनिया
सरकती
जाती है सीमायेँ
और राहेँ
साथ चलती हैँ
हर सजग
राही के
बन चेरी
है दुख
हार
का अच्छा
न जश्न
किसी
जीत का बेहतर
हवाओँ
के रुख के साथ
बदलती
रह्ती है
मरु
मेँ रेत की
ये ढेरी
2 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अमीर गरीब... ब्लॉग-बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
अति सुन्दर शब्द श्री मोहिंदर जी ! पहले भी आपको पढता रहा हूँ !
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