हर तरफ बिखरी है तेरी खुश्बू
मगर यह तो बता कहाँ है तू
यक वयक गर आ गये सामने
दिल पर रहेगा किस तरह काबू
वहशतेँ मेरी हद से बढने लगी
ज्यूँ ज्यूँ बढती गई यह आरजू
किस्सा बादलोँ पर हो जैसे लिखा
अँजाम बन कर बरसेँ न ये आँसू
तेरी यादोँ से घिरा होता हूँ तब
जब कोई नही होता आजू बाजू
मोहिंदर कुमार
1 comment:
very nice sir ! :)
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