द हरिकैन - कविता


बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं था I आज दिन में टेलीविज़न पर एक अंग्रेजी फिल्म "The Hurricane" आ रही थी I यह एक बॉक्सर "रूबल कार्टर" के जीवन पर आधारित है जिसको अदालत के गलत निर्णय के कारण उम्र कैद हो जाती है I जेल में रह कर वह अपने जीवन पर एक किताब लिखता है I उसी किताब को पढ़ कर एक लड़का बड़ा प्रभावित होता है और उस से संपर्क करता है I अपने दोस्तों की मदद से वह लड़का रूबल कार्टर को बीस बरस की कैद काट चुकने के बाद रिहा करवाने में सफल हो जता है I इसी कहानी से कुछ भाव उपजे और यह कविता बनी I कितनी सफल है यह तो आप सब की टिप्पणियों से ही पता चल पायेगा I

 मैं अपराधी नहीं परन्तु
फिर भी समय बिता रहा हूँ
ऊँची ऊँची दीवारों के बीच
अँधेरी बंद कोठरियों में
जहाँ मानवता नहीं
केवल लोहा ही पार पा सकता है
परिजनों के लिए सहारा न बन
बोझ बन गया हूँ
फिर भी मन है कि
भूल कर अपनी सारी
टूटन, थकन, लाचारी
गाहे वगाहे निकल जाता है
इन ऊंची ऊंची दीवारों से परे
लोहे की सलाखों के पार
और भर लाता है अपनी झोली
कभी पेड़ों पर छिटकी हुई धूप से
कभी दूब पर फैली चांदनी से
कभी लफ्जों के अंबार से
जो बिखर कर कागज़ पर
शायद एक दिन दुनिया के लिए
मेरी कहानी मेरी ज़ुबानी बन जायेंगे

2 comments:

Satish Saxena said...

बहुत खूब , जय हो !
हिन्दी ब्लॉगिंग में आपका लेखन अपने चिन्ह छोड़ने में कामयाब है , आप लिख रहे हैं क्योंकि आपके पास भावनाएं और मजबूत अभिव्यक्ति है , इस आत्म अभिव्यक्ति से जो संतुष्टि मिलेगी वह सैकड़ों तालियों से अधिक होगी !
मानते हैं न ?
मंगलकामनाएं आपको !
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

How do we know said...

Ye kavita padh kar bahut udaasi hui. Likhi bahut achhi hai, par sach ke bahut kareeb bhi hai..