ग़ज़ल

शबे - माहताब न रहेगी उम्र भर ऐ दोस्त 
तू  तारिकियों में भी काम चलाना सीख ले 

कब रास्ते में बहारें लेने लगें तेरा इम्तहां 
तू खिजां को अब अपना बनाना सीख ले 

मंजिल पर पहुँच कर ये राहें लौटती नहीं 
तू भी ख्वाबों से दिल को लगाना सीख ले 

सच यही है तेरे हाथ में कभी कुछ न था 
ये बात अपने दिल को समझाना सीख ले 

देर तक न रहा यहाँ किसी का भी ज़िक्र 
वादे अल्फ़ाज़ों के फ़साने भूलाना सीख ले 

                                    मोहिंदर कुमार

2 comments:

  1. देर तक न रहा यहाँ किसी का भी ज़िक्र
    वादे अल्फ़ाज़ों के फ़साने भूलाना सीख ले
    बढ़िया सीख देती ग़ज़ल ...

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  2. कसमे वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या
    अच्छा है जो तुम वादे अल्फाजों के फसाने भुलाना सीख लो

    बेहद उम्दा गजल..

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