गजल

उन शाखोँ पर फिर से पत्ते नहीँ आये
जो काट डाली थी तूने अपने हाथ से
वह क्यारियाँ तरसीँ फिर हरी पौध को
जहाँ फूल जल गये थे भरी बरसात मेँ
यह बात मेरी समझ मेँ कभी नहीँ आई
है जिन्दगी से शिकवा, या मेरी बात से
जाने तलाश किस मँजिल की रही तुझे
खूबसूरत मरहले गुजरे यूँ आसपास से
दिल से तूने  कभी अपना नहीँ समझा
औरोँ के लिये रहे  तेरे खासमखास से

5 comments:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २१ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' २१ मई २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  2. Bahut sundar rachna, aur akhri sher sabse achha laga.

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  3. Very very nice shayari thanks for sharing I loved it
    Birthday Wishes

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  4. सुना है दिल टूटता है तो आवाज नहीं होती


    ए खुदा रोशन कर इस दिल को दे दे कोई ज्योति ।

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