कर्णफूल सा मै





कर्णफूल सा
मैं संग तुम्हारे
दर्पण में ही
होता प्रतिबिम्बित
नयनों में
मैं नही तुम्हारे
एक तुम्हारी
रूपसी बिन्दिया
एक नथनी एक हार
सीधी नज़र तुम्हारी
पडे न जिसपर
मैं ऐसा ऋंगार
प्रिय मैं ऐसा ऋंगार
एक पल जीवन
स्वर्ग लगे है
एक पल सब बेकार
धूप छांव सा
जान पडे है
मुझे तुम्हारा प्यार
प्रिय तुम्हारा प्यार

कर्णफूल सा मैं संग तुम्हारे

8 comments:

शारदा अरोरा said...

एक पल जीवन
स्वर्ग लगे है
एक पल सब बेकार
धूप छांव सा
जान पडे है
मुझे तुम्हारा प्यार

बहुत सुंदर , सचमुच उस श्रृगार के बिना सब कुछ बेकार है |

Dr.Bhawna Kunwar said...

बहुत सुंदर भाव हैं आपकी रचना के बहुत-बहुत बधाई...

रंजना said...

Sundar bhaavpoorn rachna hetu dhanyawaad swikaren.

राज भाटिय़ा said...

अति सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता.
धन्यवाद

seema gupta said...

"बेहद खुबसुरत .....सीधी नज़र तुम्हरी पडे ना जिस पर मै ऐसा श्रृंगार....कैसी व्यथा है श्रृंगार भी हुआ और नज़र भी ना देखे .....ये एक पंक्ति छु गयी मन को..."

Regards

शोभा said...

वाह वाह बहुत सुन्दर उपमान दिया है। लग रहा है कि सचमुच बसंत आगया। ः)

Alpana Verma said...

एक पल जीवन
स्वर्ग लगे है
एक पल सब बेकार
धूप छांव सा
जान पडे है
मुझे तुम्हारा प्यार

bahut hi sundar kavita.

रंजू भाटिया said...

कर्णफूल सा
मैं संग तुम्हारे
दर्पण में ही
होता प्रतिबिम्बित
नयनों में

बहुत सुंदर ..बसंती हवा का खुमार चा गया आप पर :)