वियोग



तुम्हरा वियोग
परिचितों के व्यंग
अनकहे का बोध
हृदय को सालता है
झूठी सांत्वना
व्यथा को बढाती है
आशाओं पर
कुठाराघात होता है
जैसे मरुस्थल में
हिमपात होता है
बीते पलों की
मृगमारिचकाओं में खो जाती हूं
हिमखंड पिघलते हैं
अश्रूकणों में ढलते हैं
जड हुई आंखों में
चलचित्र से चलते हैं
तुम कहां खो गये
समझ नहीं पाती हूं
पूर्णता की चाह में
शून्य हुई जाती हूं
शून्य हुई जाती हूं

मोहिन्दर

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