ख्वाहिशों का मौसम
कभी खत्म नही होता
ये वो फूल है जो
कांटों की चुभन लिये होता
भूखे की ख्वाहिश सिर्फ एक रोटी
मगर फासला चान्द से कम नही होता
किसी की ख्वाहिश कार और कोठी
किसी के सर पर दीवार का साया भी नही होता
इतने हों जब फासले कैसे बने
जन्नत सी ये दुनिया
बातों के पुल से तो
फासला कम नही होता
मर कर भी रहती है
जीने की तमन्ना
वरना कब्रों पर
जन्नतनशीनों का नाम ना होता
आंसू न होते तो
हंसी की न होती कोई कीमत
ख्वाहिशें न होती जो
जमाना आज सा भी न होता
मोहिन्दर
कभी खत्म नही होता
ये वो फूल है जो
कांटों की चुभन लिये होता
भूखे की ख्वाहिश सिर्फ एक रोटी
मगर फासला चान्द से कम नही होता
किसी की ख्वाहिश कार और कोठी
किसी के सर पर दीवार का साया भी नही होता
इतने हों जब फासले कैसे बने
जन्नत सी ये दुनिया
बातों के पुल से तो
फासला कम नही होता
मर कर भी रहती है
जीने की तमन्ना
वरना कब्रों पर
जन्नतनशीनों का नाम ना होता
आंसू न होते तो
हंसी की न होती कोई कीमत
ख्वाहिशें न होती जो
जमाना आज सा भी न होता
मोहिन्दर
1 comment:
Umdhaa Janab… Mer ker bhi rehti hai……
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