इज़हार



बात करती हो हंस कर
जाने क्या क्या गुमा होता है
कभी दिल धडकता है कुछ सोच कर
कभी तुम पर शुभा होता है

तेरे होंठों का तवस्सुम
तेरी आंखों की शरारत
मेरे अहसास को जगाती है
थाम न लूं कहीं हाथ तुम्हारा
बेकरारी दिल की बढती जाती है

तुम ही कहो तुम्हार दिल में
मेरी जानिब क्या है
कोई नर्म अहसास या
कोई गर्म शिद्दत
नज़रों से नही
बोलकर बतलाओ मुझको
पलभर का कोई खेल है
तो न भरमाओ मुझको

जो कुछ भी है
हम दोनों के दरम्यान रहे
ज़माने को गर खबर हुई
दोनों के दामन रंग जायेंगे
प्रीत शरमायेगी
होंठ कुछ बोल नही पायेंगे

मोहिन्दर

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