वो चांद ही था


वो चांद ही था
आग की तपिश लिये
सांझा बनकर बंट गया जो
और न जो मेरा रहा
वो चांद ही था
सफर में मिला वो मुझे
मील का पत्थर बनकर
चला न मेरे हमकदम
फासले बतलाता रहा
वो चांद ही था
चुप रह पहले भी मैं
पर ये खामोशी न थी
शिकवा तो था दिल में मेरे
होंठों पर मैं ताले लगाता रहा
वो चांद ही था
चाहता हूं भूल जाऊं मैं
उस घडी उस बात को
अजनबी सी उस पूनम की रात को
जब अंधेरों से मैं दिल को बहलाता रहा
वो चांद ही था

मोहिन्दर

No comments: