दमतर कश्ती


रुका नही कभी मैं खुशी के इन्तजार में
गम को निभा लिया अपने सफर के साथ

खुश रहा उसी में जो खुदा ने दे देया
मांगा यही कि न उठे कभी मांगने को हाथ

अपनों के दिये जख्मों को रखा दिल में फूलों की तरह से
लौटाने के लिये इक दिन खुशनुमा दुआ के साथ

सुना था होता है डूबते को तिनके का सहारा
डूबा वो जब तो दमतर कश्ती थी उसके साथ

मोहिन्दर

No comments: