सफर की तल्लखी


वो अपनी जिन्दगी से मेरे नक्श मिटाते चले गये
रो रो के जो खत हमने लिखे, वो उनको जलाते चले गये
जब छोड दिया साथ उसने रहबर बनकर
हम हर खासो-आम को रहबर बनाते चले गये

कौन जाने ये कौन सी राह है मेरी
और किधर को है मेरी मंजिल
जिधर भी रास्ता मिला
कदम बढाते चले गये

दुनिया की रौनकें न दिल के अन्धेरे मिटा सकी
अन्धेरों को अपना साथी बनाते चले गये
आती है याद तेरी रुक रुक के बार बार
दिल को तस्सलियों से बहलाते चले गये

मोहिन्दर

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