मेरी यह कोशिश है चन्द आम लफ्ज़ों को एक नया मायना देने की... नही जानता मैं इसमें कामयाब भी हुआ कि नही
आंख वही जिसमें हो बेखौफ बिनाई
दिल वही जो रहे हर गम से बाबस्ता
राही वही जो न गिने अपने पांव के छाले
और हर राहगुजर को मंजिल का पता दे
इन्सान वही जो हो हिन्दू न मुस्लमान
धर्म वही जो रोते को हंसा दे
लफ्ज वही जो घोल दे कानो में मिसरी
गुल वही जो सेहरे,मंदिर,मैयत को इक सा सजा दे
दरिया वही जो बहे किनारों से मिल कर
ऐसा ना हो प्यासे को मायूस लौटा दे
दरख्त वही जिस पर करें परिन्दे बसेरा
और थके मुसाफिर को राह्त की हवा दे
तलवार वही जो उठे कमजोर की खातिर
और जुल्म की हस्ती जड से मिटा दे
जज्बा वही जो करे एहतराम दूसरों की खुशी का
और अपने आंसुओं को पलकों मे छुपा ले
अमीरी वही जो समझे खुद को गरीबी से कमतर
और अपना बीता हआ कल न भुला दे
खुद्दारी वही जो रहे हाल में जिन्दा
दौलत के लिये न अपना जमीर सुला दे
6 comments:
bahut khoob bahut khoob :P
बहुत अच्छे विचार हैं ।
घुघूती बासूती
ghughutibasuti.blogspot.com
miredmiragemusings.blogspot.com/
"इन्सान वही जो हो हिन्दू न मुस्लमान
धर्म वही जो रोते को हंसा दे"
वाह सुन्दर पंक्तियाँ।
आपने ऊपर वो चित्र परमानेंटली लगा रखा है, अब समझ आया, मैं यही सोच रहा था कि कोई नईं पोस्ट नहीं आई। देखिए कहीं और लोग भी मेरी तरह कन्फ्यूजन में न हों।
जिंदगी के मायने कई स्तर में इस बार अधूरा नजर आ रहा है…पूर्व की अभिव्यक्ति से इसका प्रभाव हलाका कम है…लेकिन जितना भी भावनाओं में
समेटा जा सकता था वह अच्छा लगा…।
धन्यवाद!!
दरख्त वही जिस पर करें परिन्दे बसेरा
और थके मुसाफिर को राह्त की हवा दे
मोहिन्दर जी ...ह्रदय की सच्चाई लिये बहुत सुंदर रचना के लिये बधाई
hello mohinder ji
mere pass aapka blog dekhne ke baad "wow" kehne ke liye shabd nahi hai but phir bhi--------
"अतिसुंदर बिल्कुल अनछुआ"
keep it up
god bless u
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