कभी हमने भी चाहा था किसी को
अपनी जान से भी बढकर
जमाना जान गया मगर
उस नांजनी को खबर ही न हुई
चाहा था कभी मिल जाते वो
हमें चन्द लम्हों के लिये
उमर गुजरी अपनी मगर
ऐसी कोई शामो-सहर ना हई
उसको पसन्द नही
पुराने रिश्तों से बाबस्ता होना
याद आना उनकी हरदम
हमारे लिये तो इक मजबूरी सी हुई
कोई ताल्लुक नही
तो फिर चर्चा कैसा
अपनी कहानी तो बस
एक यूंही अधूरी सी हुई
4 comments:
बहुत बढ़िया लिखा है…
प्रेम के उमंग और अधूरेपन के अहसास को
क्या सुंदरता से उभारा है लगता है सचित्र
सामने आप और आपकी तंहाई झुम रही है…
इतनी सुंदर कविता के लिए बधाई!!
कुछ रिश्तें यादों में हि रह जाएँ तो अच्छे लगते हैं । सुन्दर कविता है ।
घुघूती बासूती
bahut hi sundar lines hain
चाहा था कभी मिल जाते वो
हमें चन्द लम्हों के लिये
उमर गुजरी अपनी मगर
ऐसी कोई शामो-सहर ना हई
wah bahut khoob
उसको पसन्द नही
पुराने रिश्तों से बाबस्ता होना
याद आना उनकी हरदम
हमारे लिये तो इक मजबूरी सी हुई
ek dam sach likha hai ..
कोई ताल्लुक नही
तो फिर चर्चा कैसा
अपनी कहानी तो बस
एक यूंही अधूरी सी हुई
kya baat hai mohinder ji...dil ki baat likh di aapne ...
कभी हमने भी चाहा था किसी को
अपनी जान से भी बढकर
जमाना जान गया मगर
उस नांजनी को खबर ही न हुई
bahut khoob..Mohinder u r really great
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