भौर का निमन्त्रण



भौर देती है निमन्त्रण
नव किरणों का
सोपान कर ले
रात्री के सुनहले स्वपनों से निकल कर
आने वाले पलों का
ध्यान कर ले
इस घडी
खिलती कलियों की महक लिये
बह रहे हैं
जो हवाओं के
मदमस्त झौंके
दोपहर तक बन जायेंगे
वह लू-थपेडों के बबंडर
इन पलों को सेतू बना कर
अपने प्रश्नों का निदान करले
बांध कर कोई
रख न पाया
बह्ती समय की धार को
हाथ से फिसल
रेत सी
बिखर जाये धरा पर
इससे पहले खोल आंखें
डूब कर तू उतर ले
पूरे सब अरमान कर ले
भौर देती है निमन्त्रण
नव किरणों का
सोपान कर ले

2 comments:

राकेश खंडेलवाल said...

सुन्दर है आव्हान.( वर्तनी ? )

राकेश

Reetesh Gupta said...

सुंदर भाव हैं भाई ....बधाई