प्रण मैं कर लूं, नमन मैं कर लूं



इतना आक्रोश है मेरे मन में
चित्कारूं तो जग को कोलाहल से भर दूं
इतनी आग है दिल के अन्दर
फूंकारूं तो जग को दावानल कर दूं
इतने अश्रू हैं इन नयनों में
रो दूं तो जल थल कर दूं

शहीदों की कुर्बानियों पर
जो बैठे हैं मद नाग विषैले
गरुड सरुपा बन कर उनको
नख शिख से छिन्न-भिन्न कर दूं

सोने की चिडिया के पहले
विदेशी गिद्धो ने सुनहरी पंख थे नोचे
देसी कौऐ अब, देह से मांस कचोट रहे हैं
जी करता है, बन कडक दामिनी, गिरूं इन्हीं पर
पल भर में इनको भस्म ही कर दूं

प्रजातन्त्र के हरे भरे वृक्ष से
अराजकता की अमरबेल हटानी होगी
फूंकने होंगे मृत आत्माओं में प्राण दोबारा
देश-द्रोहियों पर गाज गिरानी होगी
निकलो स्वार्थ के खोल से बाहर यह सोच कर
कल औरों ने किया था, आज प्रण मैं कर लूं,
नमन मैं कर लूं

2 comments:

Anonymous said...

Nice poem on Love with your Country... You are right we must have to set the things right by acting harsh to thosoe who are responsible for it.

Anonymous said...

देश भक्ति के दिन लद गये भैया तभी तो कोई कमेंट नही आयो रे...
सकीरा पे लिख के देखो लाइन लग जायेगी कमेंटस की...


रजनी