ये मेरी लाईफ़ का सवाल है पापा

"अरे और कितनी देर लगेगी आप को तैयार होने में ?" रामेश्वर अपनी पत्नी से पूछ रहे थे I उन्हें अपने बेटे प्रेम को मिलने रेलवे स्टेशन पर जाना था I प्रेम अपनी इन्जीनियरिंग की डिग्री ले कर घर लौटने वाला था परन्तु उसे एक अच्छी आफर मिल गयी थी और उसे तुरन्त जा कर ज्वाइन करना था ऐसा उसने टेलीफोन पर उन्हें सूचित किया था I रेलवे स्टेशन से ही प्रेम को दूसरी ट्रेन पकड कर बैंगलोर निकलना था I बस एक घंटे भर का समय बीच में था I
मैं तैयार हूं... बस दो मिनट मैंने प्रेम कि लिये कुछ बनाया है उसे उठा लूं I चलिये रमा किचन से निकलते हुए बोलीं I दोनों घर के बाहर प्रतीक्षा कर रहे आटो में बैठ गये I यह लडका भी बिलकुल सीधा है.. पहले घर आता कुछ दिन रहता फिर सारी उमर नौकरी ही तो करनी है..रमा बोली I उसने ठीक किया रमा... नौकरी कोई सडक पर थोडे ही पडी मिलती है जो जब चाहे उठा लो... मेरी चिन्ता भी दूर हुयी... बस अब सविता के हाथ पीले कर दूं, प्रेम की शादी तो तीन चार साल बाद हो सकती है अभी तो शालिनी पढ रही है और चौधरी जी को भी कोई जल्दबाजी नही है .. फिर सारी जिम्मेदारी खत्म समझो रामेश्वर बोले I आप ठीक कह रहे हैं जी.. लडका अच्छी जगह लग जायेगा तो बहन की शादी में भी मदद कर सकेगा और मुझे भी बहु के रूप में शालिनी जैसी सुन्दर और सुघड लडकी मिल जायेगी रमा बोली I स्टेशन अभी थोडी दूर था मगर दोनों आने वाले समय के सुहाने सपने आंखों में संजोये चुपचाप बाहर की और देख रहे थे I चुप्पी तब टूटी जब आटो वाले ने आटो को एक तरफ खडा करके कहा. जी स्टेशन आ गया I आटो का किराया चुकता करने के बाद दोनों रेलबे स्टेशन के गेट की और बढे I ट्रेन दस मिनट बाद तीन नम्बर प्लेटफार्म पर आयेगी.. रामेश्वर चार्ट देखते हुए बोले I
ट्रेन ठीक समय पर आ लगी.. दोनों की नजरें भीड में अपने बेटे को ढूंढ रही थी.. तभी पीछे से प्रेम ने आवाज लगायी ... पापा में यहां हूं. I थोडी दूरी पर प्रेम कुली से सामान उतरवा रहा था.. कुली को पैसे देने के बाद वह उनकी और बढा और दोनों के पांव छुए I रामेश्वर सामान के पास खडी लडकी की और प्रश्नवाचक दृष्टि से देख रहे थे..जैसे जानना चाह रहे हों कि यह कौन है I रमा का भी वही हाल था.. प्रेम समझ गया और बोला... मां यह प्रीती है..मेरे साथ ही पढती थी..इसके पिता जी बहुत बडे बिजनसमैन है..तीन चार फैक्टरी है अपनी..और उन्होंने ही मुझे अपनी कंपनी मे आफर दी है I प्रीती ने धीरे से सिर हिला कर दोनों को नमस्ते कहा I दोनों के हाथ आशीर्वाद के लिये उठे जरूर लेकिन उनके मुंह से निकले शब्द अस्पष्ट से थे I
रामेश्वर प्रेम को अलग ले जा कर बोले.. बेटा बात यहीं तक है या कुछ और I प्रेम बोला.. पापा प्रीती के पापा उसकी शादी मेरे साथ करना चाह्ते है..प्रीती और मैं एक दूसरे को चाह्ते हैं.. आपका आशीर्वाद चाहिये I मगर मैं चौधरी जी को क्या जबाब दूंगा..जिनके हम पर इतने एहसान हैं और हम शालिनी से क्या कहेंगे... रामेश्वर के गले से आवाज फंस फंस कर निकल रही थी वह अपने आप को निसहाय सा पा रहे थे.. ऐसी परिस्थिति की उन्हें स्वप्न में भी कल्पना नहीं थी I मैंने चौधरी जी या शालिनी से कोई वादा नहीं किया था पापा.... आपने किया होगा I ये मेरी लाईफ़ का सवाल है पापा .. प्रेम बोला I हां बेटा तुम ठीक कह रहे हो.. ये तुम्हारी लाईफ़ है मगर तुम्हारी मां और मेरे पच्चीस बरसों के संजोये सपनों का क्या जो हमने तुम्हारे लिये देखे थे I गलती हमारी थी कि हमने तुम्हारी इसी लाईफ के लियी खुद को फटेहाल रख कर तुम्हें सफलता की सीढियां चढते देखना चाहा.. रामेशवर का गला रूंध गया और वह वही बैंच पर बैठ गये I प्रेम व रमा उनसे कुछ कह रहे थे मगर रामेश्वर के कानों में एक ही बात गूंज रही थी "ये मेरी लाईफ़ का सवाल है पापा.." साथ वाले प्लेटफार्म से एक ट्रेन फर्राटे से एक तूफान सा उठाते हुये गुजर रही थी मगर यह तूफान उस तूफान से कहीं कम था जो रामेश्वर के मन में उठ रहा था I

5 comments:

नितिन | Nitin Vyas said...

बढिया!!

Udan Tashtari said...

अच्छा लिखा है, बधाई!

Anonymous said...

लघु कथा तो अच्छी लिखी है लेकिन आपने " । " की जगह पर I लगाया हुआ है।

Ashish said...

अच्छी कहानी है। मुझे ऍक शिकायत हैं। हमेशा लड़के कॊ गलत क्यों दिखाया जाता है। आखिर उसके जिवन का सविल हैं।

ePandit said...

अच्छी कहानी, वैसे आशीष ने ठीक कहा इस बात पर भी बहस हो सकती है कि हमेशा लड़के को ही गलत क्यों दिखाया जाता है। क्या माता पिता को जबरदस्ती कोई भी लड़की अपने बच्चे के पल्ले बांध देनी चाहिए।

पूर्णविराम लगाने के लिए:

बारहा में --> |(बैकस्पेस के बाईं तरफ वाली कुँजी)

हिन्दीराइटर तथा इंडिक आईएमई --> . (डॉट)

और हाँ पूर्णविराम से पहले स्पेस नहीं आता, बाद में एक स्पेस आता है।