बहुत से किस्से व चुटकले सुने थे कवियों के बारे में और कवि सम्मेलनो में भी देखा था कि कविता पाठ करने वाला कवि बार बार मुड कर मंच पर बैठे कवियों को सम्बोधित करता है ताकि अगर वह लोग झपकी ले रहे हों तो जाग जायें.
चिट्ठा जगत में आ कर एक बात सिद्ध हो गयी कि कविता लिखने वाले बहुत लोग हैं परन्तु उन्हें पढने वाले और पढ कर टिप्पणी करने वाले बहुत कम. यदि कोई टिप्पणी करता भी है तो प्रशन्सा मात्र ही..कोई सुझाव या कमी निकालने की जुर्रत कोई नही करता. लेखा जोखा नीचे दे रहा हूं जो मेरे ब्लाग पर लागू होता है
कुल रचनाये =७४
कुल आगन्तुक = ७८६
कुल टिप्पणीया = ७५
एक रचना पर अधिकतम टिप्पणीय़ा = ८
रचनाये जिन्हे टिप्पणी नही मिली = ३७
जिन रचनाओं को टिप्पणी नही मिली वह रचनायें चिट्ठे के अन्त में हैं...इसी से पता चलता है कि आगन्तुक सिर्फ पहले की एक दो रचनायें पढ कर आगे चल देते हैं
जिनसे मुझे प्रोतसाहन मिला वह हैं:
रंजना जी, दिव्यभाव जी, समीर जी, सिरीश जी, डा. भावना जी, राकेश खण्डेलवाल जी, रीतेश गुप्ता जी, घुघूती बासूती जी, सागर चन्द नाहर जी, डा. प्रभात टंडन जी, डा. ब्योम जी, मनीशा बत्रा जी, अनूप शुक्ला जी, प्रत्यक्षा जी, डा. रमा द्विवेदी, स्वर्णा ज्योति जी.
भले ही कुछ भी हो, टिप्पणी मिले या नही..मैं भागने वालों में से नही हूं.. परन्तु मेरे विचार से इसका असर चिट्ठा जगत में आने वाली नयी रचनाओं पर अवश्य पडता है.. टिप्पणी शीघ्रता से मिलती है तो दूसरी रचना उतनी ही शीघ्रता से आ जाती है अन्यथा.. लेखक थोडा और इन्तजार करता है. हथियार जब तक तेज न हो मार नही करता उसी तरह टिप्पणी का काम है रचनाओं में तेज धार लाना....
अन्त में .... एक अदद टिप्पणी " comment" का सवाल है बाबा
6 comments:
मोहिन्दर जी।
मुझे मालुम है कि आप भागने वालों में से नहीं हैं। आप चिंता मत कीजिए। आगे से मेरी भी टिप्पणी मिला करेगी।
टिप्पणी कर्ताओं में मेरा नाम क्यों नहीं है?
आप मेरी टिप्प्णीयों की मार से कैसे बच गए? :)
आप बेफिक्र लिखो जी, टिप्पणीयाँ तो आनी-जानी है. :)
आपको एक सलाह देना चाहता हूँ। यह जो आपने Myspace के माध्यम से Slide show लगाया है, और यह लगातार Bandwith का उपयोग करता है , इसलिये वह पाठकों को भी प्रतिकर्षित करता होगा। यदि किसी के इंटरनेट के गति धीमी होगी तो इस बात की अधिक संभावना है कि वह इस चिट्ठे को बंद कर दे तथा इसके हर पृष्ठ पर होने की आवश्यकता, मेरी समझ से तो नहीं है। इसे हटाने से शायद अधिक पाठक आपके चिट्ठों पर समय दें और टिप्पणी भी करें।
लीजिए राजव जी ने सुझाव भी दे दिया । सच यह है कि पढ़ तो सकती हूँ , पढ़कर उसे सराह भी सकती हूँ किन्तु सलाह देना या कुछ दोष निकालने लायक बुद्धि या कविताओं में अनुभव नहीं है । वह काम अनुभवी लेखक ही कर सकते हैं । किन्तु आपने कहा है सो अब ऐसा करने की धृष्टता भी शायद करने लगूँ ।
घुघूती बासूती
हा…हा…हा… :) :)
बहुत सही…बहुत सही…।
सच यहाँ भी वही है जो कवि सम्मेलनों में हुआ
करता है…!! खैर चिंता की आवश्यकता नहीं है…
लेखक का काम है लिखना… और अपने मुख को कई ओर तक फैलाना की मात्र एक विषय के साथ ही जमें न रह जाएँ…और इस रूप में आप मेरे "प्रथम कवि" है जो हर विषय की एक गंभीर मूर्तता को दिखाता रहता है…।
Hi all. How are you?
Post a Comment