आलमे-गफ़लत

सिर्फ़ खामोश हूं
कोई साजिश नहीं की है
सच अगर मानो मुझे
तो मरने से पहले
जीने की बहुत कोशिश की है
ऐसी राहें हैं मिली
सिर्फ़ पांव नहीं
रूह भी घायल है मेरी
मैंने हर बार गिर के
सम्भलने की हिमाकत जो की है
लाश पहचानने का जब दौर आया
हर कोई अपने-अपनों को ढूंढे फ़िरा
आज तक किसने किसी गुमशुदा
अजनबी की शिनाखत की है
कुछ के हिस्से में है जमीदोजी
कुछ चिताओं पर चढ खाक में मिल जायेंगे
हश्र हर एक को मालूम तो है लेकिन
कब किसने ईमान पर चलने की जुर्रत की है

6 comments:

शैलेश भारतवासी said...

इस पंक्ती ने तो दिल जीत लिया-

आज तक किसने किसी ग़ुमशुदा
अजनबी की शिनाख़्त की है?


मानव-मन को कुत्ते की दुम होते क्या खूब दिखाया है!

हश्र हर एक को मालूम तो है लेकिन
कब किसने ईमान पर चलने की ज़ुर्रत की है?

Anonymous said...

ajnavi logo k yaad har kisi ko nahi aati.....
ye dil se dil ki baate hai...
jeene ko duniyaa me sabhi jeete hai..
jeene k adaa sabhi ko nahi aati....
wo mera hum safar tha ya kisi or ka....
saath chale walo or bhi the saath....
ye baat har kisi ko yaad nahi aati......
maine pehchana usko......
ya usne mujhko...........
ye baat har kisi k samajh me nahi aati....
ye baaten sirf dil walo jaisi hai...
ye baate har kisi k gale utar nahi paati.....

Anonymous said...

आज तक किसने किसी गुमशुदा
अजनबी की शिनाखत की है

बहुत खूब क्या पंक्ति लिखी है

Udan Tashtari said...

बहुत खूब...अच्छा लिख रहे हैं..लिखते रहें.

Reetesh Gupta said...

मोहिन्दर जी,

बहुत अच्छा लिखा है भाई ...बधाई

रंजू भाटिया said...

रूह भी घायल है मेरी
मैंने हर बार गिर के
सम्भलने की हिमाकत जो की है
लाश पहचानने का जब दौर आया
हर कोई अपने-अपनों को ढूंढे फ़िरा
आज तक किसने किसी गुमशुदा
अजनबी की शिनाखत की है

its wonderful ....bahut hi khubsurat likha hai