क्षणिकायें - मेरी कलम से

मजहब

घर मेँ इबादत के लिये
घर से बाहर मज़लूमों की हिफ़ाजत के लिये

इन्सानियत

हर मजहब से ऊपर
हर इन्सान का मजहब है

दानिशमंदी

बीते हुये बुरे कल को
लाज़िम है भुला देना

जिन्दादिली

चाहे दिल दर्द से रोता हो
होंठों पर हों मुस्काने

चमन

एक पडाव
बहारें जहां ठहरेंगी
खिंज़ा के आने तक

7 comments:

Udan Tashtari said...

मोहिन्द्र भाई

मेरी समझ में हाईकु तीन लाईन की कविता होती है. पहली में ५, दूसरी में ७ और तिसरी में ५ अक्षर होते हैं. आधा अक्षर नहीं गिना जाता. तीनों पंक्तियाँ अपने आप में पूरी होनी चाहिये.यानि एक ही पंक्ति को दो भाग में तोड़ कर दो पंक्ति नहीं बनाया जा सकता.

-ऐसी मेरी जानकारी है. उस हिसाब से आपकी क्षणिकायें हाईकु कहलायेंगी, इसमें मुझे संशय है.
क्षणिकायें कहना शायद ज्यादा उपयुक्त हो. देखियेगा.
भाव अच्छे हैं, बधाई.

Udan Tashtari said...

मेरे इस आलेख को देखियेगा:

http://udantashtari.blogspot.com/2006/03/blog-post_114143547262017921.html

कभी हमने भी हाईकु पर हाथ अजमाया था, उदाहरण के लिये:

सावन भादों
आँख आँसूं बहाये
तुम ना आये.

भीगी चाँदनी
तारे झिलमिलाये
तुम ना आये.

चढती धूप
बदन झुलसाये
तुम ना आये.


:)..अब नहीं लिखते.

राकेश खंडेलवाल said...

सही कहा है
उड़न तश्तरी ने
मोहिन्द्र भाई

Mohinder56 said...

शुक्रिया समीर जी, राकेश जी,
आप का कहना बिलकुल सही है... क्षणिकायें शब्द ही उचित रहेगा..

राजीव रंजन प्रसाद said...

क्षणिकायें ही सही शब्द है, हाईकू की बात तो यहाँ नहीं। एक से बढ कर एक क्षणिकायें हैं मोहिन्दर जी आनंद आ गया..

*** राजीव रंजन प्रसाद

ghughutibasuti said...

अधिक उर्दु तो समझ नहीं आती, जितना समझी बहुत अच्छी लगीं ।
घुघूती बासूती

रंजू भाटिया said...

एक पडाव
बहारें जहां ठहरेंगी
खिंज़ा के आने तक

bahut sudnar laga yah lines..

बीते हुये बुरे कल को
लाज़िम है भुला देना