आ बैठ, कुछ बात करें
छोड दुनिया के काम बखेडे, आ बैठ, कुछ बात करें
झांक झरोखों के अतीत से, जीवन आत्म सात करें
आ बैठ, कुछ बात करें
खूब लडे हैं अंधड पानी से और माथे की लकीरों से
कब तक रहें भरे गांव में, हम अन्जान फ़कीरो से
आ बैठ, कुछ बात करें
पीछे छूटे खेल लुकाछिपी के, सुध हुई बिसरायी सी
कब तक शर्म का पर्दा ओढे, रहोगी तुम सकुचायी सी
आ बैठ, कुछ बात करें
वही सभी हैं बाग बगीचे, वहीं अभी है अमरायी भी
जाने कब ये बचपन बीता, न बीत जाये तरुणायी भी
आ बैठ, कुछ बात करें
कुछ उजले से, कुछ मटियाले, बीते पलों के साये हैं
फिर उधेडें बखिया यादों की, आंसू की बरसात करें
आ बैठ, कुछ बात करें
कुछ शोख चांदनी रातें हैं और नदिया का किनारा भी
जहां मिल बैठे थे गलबहिंयां, फिर चल वहीं दोबारा भी
आ बैठ, कुछ बात करें
तोड चलन इन काली रातों का प्रणय निवेदन के दम पर
रूठो फिर तुम,मै मनुहार करूं, न बैठो हाथ पर हाथ धरे
आ बैठ, कुछ बात करें
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5 comments:
बहुत खूब, ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी,
कुछ उजले से, कुछ मटियाले, बीते पलों के साये हैं
फिर उधेडें बखिया यादों की, आंसू की बरसात करें
बहुत सुंदर रचना है.
और हाँ, वो पेटिंग किसने बनाई है. बड़ी सुंदर है.
bhaut bhaut acha laga aapki is rachna ko padhna mohinder di
bhaut pyaari painting bhi hai kya aap ye kala bhi jaante hain
likhte to aap bhaut kamaal hai hi
आप्ने पुकारा और हम चले आये...
और यहाँ आकर लगा, सच मे बहुत कुछ छूट रहा था िनगाहों से..
बहुत खूब्सुरत रच्नाये है आप्की..
"आ बैठ, कुछ बात करें".. ये तो लग्ता है िकसी की पुकार का जवाब िलख िदया है आप्ने.. और वो भी बहुत खूब्सूर्ती से...
बहुत बहुत शुभ्कम्नाये आप्को...
आ बैठ, कुछ बात करें
wah wah!! bahut hi sundar likha hai aapne ...kai din baad aayi ..par har rachna ek se badh kar ek hai.....
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