समाज
वो मर गया
कारण भूख और बेरोजगारी
भोज तेरहवीं क्या करे सिद्ध
मरे जानवर को भंभोडते गिद्ध
दहेज
जितना दिया
न पड जाये कम
चाह में खुशियॊं की
न खरीद लेना गम
इन्सान मिलते गिने चुने
बहुत घूम रहे यम
मजबूरी
होंठ गीले करता रहा
अपने ही पसीने से
जिस्म का पानी हुआ खत्म
थक गया जब जीने से
सो गया हमेशा के लिये
सपने लगा सीने से
बेकार
उलट पुलट कर देखता रहा
जब समझ न आया
फ़ेंक दिया फ़िर से
भूखा था, रोटी की तलाश थी
उस पत्थर से हीरे का
इस विराने में वो क्या करता
6 comments:
बहुत अच्छी लगी , रचनाएँ ।
अच्छे खयाल हैं
अच्छॆ भाव है, मोहिन्दर जी. बधाई.
मोहिन्दर जी,बढिया क्षणिकाएं हैं। बधाई।
एकदम सच्ची भावनाएँ!!!
जितना दिया
न पड जाये कम
चाह में खुशियॊं की
न खरीद लेना गम
इन्सान मिलते गिने चुने
बहुत घूम रहे यम
मोहिन्दर जी,बढिया और कड़वा सच लिखा है
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