किसको फ़ुरसत है कि सुने रागो-रंगे के किस्से
सब मश्गूल हैं अपने-अपने पेट की दुकानों में
जब पहली बार मिले वो तो तबीयत से मिले
फ़िर कभी मिले, तो मिले भीड भरे चौराहो में
झूठ उनके लबों से सुना तो सबने सच माना
हकीकत रोती रही, सच खो गया हालातों में
रूबरू आंख मिलाने से हमेशा उन्हें परहेज रहा
है यकीं उनको नहीं, मुहब्बत भरे जजबातों में
मुझको हमेशा गुल शाखों पर ही खिले भाते हैं
तोड कर क्यों लोग उन्हे सजा लेते हैं गुलदानों में
5 comments:
सही लिखा है,मोहिन्दर जी.गुल तो शाख पर ही अच्छे लगते है.गुल्दानों के लिये तो कागज़ के फूल ही उचित हैं.
रूबरू आंख मिलाने से हमेशा उन्हें परहेज रहा
है यकीं उनको नहीं, मुहब्बत भरे जजबातों में
wah wah jawaab nahi aapaka ..bahut hi sundar likha hai ..
बहुत बढिया जज्बातों को समेटे एक बेहतरीन गजल है।बधाई।
झूठ उनके लबों से सुना तो सबने सच माना
हकीकत रोती रही, सच खो गया हालातों में
बहुत खूब मोहिन्दर जी
मोहिन्दर जी आपकी शिकायत अब खत्म हुई समझिये...मैने अपने ब्लोग पर आपका बटन (आपके ब्लोग का)बना कर लगा लिया है...:)
मुझको हमेशा गुल शाखों पर ही खिले भाते हैं
तोड कर क्यों लोग उन्हे सजा लेते हैं गुलदानों में
ये लाईन बहुत ही ज्यादा पसंद आई है...
सुनीता(शानू)
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